देश, देशभक्ति और राष्ट्रवाद - तहक़ीकात समाचार

ब्रेकिंग न्यूज़

Post Top Ad

Responsive Ads Here

रविवार, 14 अगस्त 2022

देश, देशभक्ति और राष्ट्रवाद

अमित कुमार मिश्र

'राष्ट्र' सिर्फ भौगोलिक सीमा का नाम नहीं हो सकता और न ही वो किसी निश्चित शासक के परिधि से परिभाषित किया जा सकता है। राष्ट्र एक उद्देश्य है, एक परियोजना है और रोजाना की रायसुमारि भी है। संविधान निमार्ण के साथ हमने इसे‌ अपने उद्देशिका मे प्रकट किया है। जहां हम कहते है कि 

हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी , पंथनिरपेक्ष,लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ संकल्पित है। 
किसी भी देश की कोई एक भाषा नहीं हो सकती और न ही कोई एक संस्कृति। कोई देश किसी एक धर्म और धर्मिक पहचान के साथ अस्तित्ववान अधिक दिनों तक नही रह सकता है। जबतक वो देश के परिधि के भीतर हर धर्म, भाषा, संस्कृति को न्याय के साथ शामिल न करे। दरअसल देश अनेक राष्ट्रीयताओ को समेटे हुए हो सकता है। जैसे हमारा देश भारत। 

दूसरी सदी रचित विष्णु पुराण में 'भारत' हिमालय के दक्षिण भू भाग को कहा गया है। जहां बसने वाले हर एक को भारतीय कहा गया। इसमें वैष्णव थे, तो जैन भी थे, बौद्ध भी थे। भारतीय को वहाँ भी किसी मत के नागरिक के तौर नहीं देखा गया। भारत करीब 4 हजार संस्कृतियों का समुच्चय है जहां करीब 700 बोलियाँ या भाषाएँ है। यहाँ कोई मूल या पवित्र जाति या धर्म नहीं है। भारत संस्कृतियों के सम्मिश्रण से बना है। यहाँ तुलसी के राम अलग है तो कबीर के राम अलग। यहाँ रामायण के 3000 से अधिक वर्जन है। जो एक दूसरे से एकदम भिन्न है। यहाँ राम की पूजा होती है तो रावण की भी। यहाँ शाकाहारी भी हिन्दू है तो मांसाहारी भी हिन्दू है। यहाँ शिवलिंग पूजने वाला भी हिन्दू है तो शक्ति का उपासक भी हिन्दू है। यहाँ वैष्णव भी हिन्दू है तो राजा बलि को पूजने वाला भी हिन्दू है। 

परन्तु उत्तर प्रदेश का हिन्दू बिल्कुल केरल के हिन्दू जैसा नहीं है। बंगाल का हिन्दू बिहार के हिन्दू से अलग भी है। ऎसे ही एक इस्लाम को मानने वाले, असम या बंगाल के मुसलमान तमिलनाडु या केरल के मुस्लमान से भिन्न है। ये भिन्नताएं भाषा की है, संस्कृति और साझी विरासत की भी है। नेहरू की समझ का सहारा लिया जाय तो भारत उस पन्ने की तरह है जहां समय ने जो दस्तावेज लिखे है, अतीत से लेकर वर्तमान तक सब सुरक्षित है। 

फिर ऎसे में किसे देश समझा जाये और किसी राष्ट्रवादी। क्या मानचित्र देश है या तिंरगा झण्डा देश है। अशोक स्तंभ या किसी दल की सरकार जिसे वोट देकर चुना जाता है, वो देश है। नौकरशाही को देश समझा जाये या पूंजी के समूह को। भारतीय सेना देश है या भारत का अदालतें। क्रिकेट टीम देश है या हाकी टीम। दरअसल ये सब देश के प्रतीक है परन्तु देश नहीं। 

कोई भी देश एक भौगोलिक सीमा के भीतर बसने वाले हर एक नागरिक के राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व का नाम है। इस प्रकार 'हम भारत के लोग' देश है। इन लोगों में वो शामिल है जिनके बारे में हम कुछ भी ठीक से नहीं जानते जैसे, चेन्चू, डाफला, कोरवा, कामर, खोंड, पुरुम, कोलघा, बुक्सा, कोटा और न जाने कितनी जनजाति है। देश के शक्ल में इन सबकी शक्ले शामिल है, चाहे इनकी संख्या कितनी भी क्यो न हो। इसी प्रकार धर्मिक रुप से अल्पसंख्यक पारसी समुदाय भी देश है और बहुसंख्यक हिन्दू भी। जब हम देश की जय बोलते है तब दरअसल हम इनकी ही जय बोलते है। 

परन्तु हम देश उनके प्रतीकों के माध्यम से ही पहचानते है। देश एक राजनैतिक दल की सरकार का और उसके मातहत  नौकरशाही तंत्र का पर्यायवाची बन चुका है। टेलीविजन और अखबार में जिसके चर्चे है वहीं देश को परिभाषित कर रहे है। ये बिल्कुल वैसे है जैसे एक लिबास ही, उस लिबास को धारण करने वाली आत्मा का परियार्य बन गया हो। 

वैसे राष्ट्रवादी होना और देश प्रेमी होने में भारी अंतर है। राष्ट्र  का मतलब लोगो के साझा संस्कृतियां, साझी विरासत का समुच्चय है। जो विविधता में एकता के जरिये ही सम्भव है। इसलिए देश प्रेम की आवश्यकता है। प्रेम किसी रिश्ते का अधार बन जाये तो रिश्ता मजबूत होता और भरोसा पैदा करता है।

 राष्ट्रवाद हमेशा राष्ट्र राज्य और उसकी व्यवस्था पर गर्व करना सिखाती है, उसे ही सबसे बेहतर समझता है और उसके प्रति एक प्रकार का समर्पण पैदा करता है। राष्ट्रवाद, राष्ट्र को एक शक्ति के उभार के रुप में देखता है जो शासन के द्वारा, शासक की इच्छा के अनुरूप ही परिणत होता है। 

जबकि देश प्रेम नैसर्गिक अभिव्यक्ति है जो अपने जन्म भूमि से प्रेम करना सीखती है। देश प्रेम में हर बोली, भाषा, संस्कृति, कला और धर्म के प्रति सम्मान का भाव होता है। वो विविधता को स्वीकार करना सीखती है।

Post Bottom Ad

Responsive Ads Here

Pages