किसी देश का विकास शिक्षा के विकास के वगैर संभव नहीं है उसके बाद भी भारत में प्रांतीय और केंद्रीय सरकार द्वारा शिक्षा को मूल्यपरक बनाने के लिए कोई ठोस कदम नही उठाया जा रहा है।
आज भले ही सर्व शिक्षा अभियान के तहत अंतिम पंक्ति में खड़े बच्चों को शिक्षा देने का ढिंढोरा पीटा जा रहा है लेकिन धरातल पर पहुंचने के बाद देखने को मिल रहा है कि परिषदीय स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे इतिहास ,भूगोल ,विज्ञान ,गणित और अंग्रेजी के विषय में पूरी तरह से फिसड्डी हैं ।
तहकीकात समाचार के संपादक सौरभ वीपी वर्मा एवं सहयोगी कुलदीप चौधरी ,केसी श्रीवास्तव एवं सुशील रंजन द्वारा परिषदीय विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों एवं वहां की व्यवस्थाओं पर एक रिपोर्ट तैयार किया गया है जिसमें बस्ती मंडल के 90 फीसदी परिषदीय स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं अव्यवस्थित पाई गई वहीं 88 फीसदी बच्चे स्कूली पाठ्यक्रम की शिक्षा से वंचित पाए गए।
रिपोर्ट में बस्ती ,सिद्धार्थनगर ,एवं संतकबीरनगर के 60 से अधिक स्कूलों का डाटा एकत्रित किया गया जिसमें पाया गया कि 1 से 5 तक 70 फीसदी से अधिक बच्चों को स्कूल के सभी किताबों के बारे में जानकारी नही है ,वहीं इन बच्चों को हिंदी ,अंग्रेजी एवं गणित के बेसिक सवालों का जवाब भी नही पता है ।इन बच्चों से पूछे गए कुछ सरल सवालों का जवाब भी वह देने में असमर्थ दिखाई दिए । वहीं सामान्य ज्ञान के सवालों का जवाब 90 फीसदी बच्चे नही दे पाए ।
रिपोर्ट में कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों की स्थिति भी काफी खराब दिखाई दिया , बच्चों से उनके ही किताब से पूछे गए सवाल का जवाब देने में वह सक्षम नही दिखाई दिए । इसी प्रकार से देश की राजधानी ,उत्तर प्रदेश के राज्यपाल , उत्तर प्रदेश के सभी राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों ,और कई सरल सवालों के जवाब देने में वह असमर्थ हो गए। परिषदीय स्कूलों में पढ़ने वाले 1 से 8 तक के बच्चों से पूछे गए महज 10 सवालों में से 88 फीसदी बच्चे सही जवाब नही दे पाए वहीं 12 फीसदी बच बच्चों की बात करें तो उन्होंने अधूरे जवाब दिए हैं।
रिपोर्ट में मिला कि स्कूलों में बनने वाले मिड डे मील की गुणवत्ता भी तय मानक के अनुसार नही बनाई जाती है , इसके अलावा स्कूल में बच्चों से कई प्रकार के छोटे मोटे कार्य लेने की बात भी सामने आई है ।
इस रिपोर्ट में स्कूल में पढ़ाने वाले अध्यापकों से खराब शैक्षणिक गुणवत्ता के बारे में जानकारी लिया गया तो 80 फीसदी अध्यापकों ने सरकारी सिस्टम का दोष दिया ,अध्यापकों ने समय से स्कूल में किताब न मिलना ,एवं जरूरी बुनियादी सुविधाओं की कमी को बताया गया ।
ऐसी स्थिति को देखते हुए सवाल पैदा होता है कि आखिर प्राइमरी स्कूलों एवं वहां की शिक्षा व्यवस्था को कारगर बनाने के लिए सरकार को दिलचस्पी क्यों नही है ।