सौरभ वीपी वर्मा
बस्ती- सरकार द्वारा कई प्रकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं को बनाया जाता है ताकि ग्रामीण क्षेत्र के आबादी के पास मूलभूत सुविधाओं की पहुंच सुनिश्चित हो पाए लेकिन स्थानीय जिम्मेदारों की उदासीनता के चलते करोड़ो रूपये की लागत से बनाई गई योजनाएं देखते ही देखते ध्वस्त हो जाती हैं और योजना का उद्देश्य भी जमींदोज हो जाता है ।आज हम आपको ऐसे ही एक बड़ी योजना टैंक टाइप स्टैंड पोस्ट (टीटीएसपी) के बारे में बताने जा रहा हूँ जिसके निर्माण में जनपद भर में करोड़ो रुपया तो खर्च किया गया लेकिन योजना अपने उद्देश्य तक जाने से पहले ही ध्वस्त हो गया।
टीटीएसपी का निर्माण वर्ष 2013-14 में जनपद के लगभग 300 इंसेफेलाइटिस प्रभावित ग्रामपंचायतों में हुआ था जिसमे से सल्टौआ ब्लॉक के 27 ग्राम पंचायतों में भी इसका निर्माण हुआ था लेकिन विकासखंड के 27 ग्राम पंचायतों में लगाये गए टीटीएसपी हाथी दांत बनकर रह गया ।
सल्टौआ ब्लॉक के अमरौली शुमाली, पिटाउट , फेरसम ,कोठिला ,दसिया ,मनवा ,सेखुई ,सिसवारी ,बसडीला ,जिनवा, सूरतगढ़ , गोरखर , बंगरिया ,बालेडीहा समेत 27 इंसेफेलाइटिस गांवों में इस तरह के पानी की टंकी का निर्माण हुआ था लेकिन डेढ़ दर्जन से ज्यादा टीटीएसपी तो बिना चले ही ध्वस्त हो गया और देखते ही देखते वह ढहने के करीब पहुंच गया।जिन गांवों में पानी टंकी को चालू किया गया उसमें रिसाव होने के चलते वह भी बंद कर दिया गया।
स्वच्छ पेय जल उपलब्ध कराने के उद्देश्य से हुआ था टीटीएसपी का निर्माण
विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं भारत सरकार द्वारा भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को दूषित पानी से मुक्ति दिलाने के लिए इस योजना की शुरुआत किया गया था । इस योजना को क्रियान्वित करने के लिए बस्ती मंडल में सबसे पहले स्वास्थ्य विभाग उसके बाद जल निगम को इसके देख रेख की जिम्मेदारी सौंपी गई लेकिन जल निगम ने आज तक गांवों में निर्मित पानी टंकियों को देखने और जमीन पर उसके उद्देश्य की पूर्ति को जानने की जहमत नहीं उठाया जिसका परिणाम है कि करोड़ो रूपये की लागत से बने पानी की टंकी से आज तक एक बूंद पानी पीने का नसीब नही हुआ।
टाइल्स के नाम पर डकार लिया गया धन
कई गांव के स्थानीय लोगों द्वारा इसकी शिकायत करने पर जिम्मेदारों की आंख खुली तो पानी टंकी में टाइल्स लगाने की बात कही गई उसके बाद ग्राम पंचायत के सभी 27 गांवों में टीटीएसपी पर टाइल्स लगाने का काम शुरू हुआ लेकिन टाइल्स के नाम पर भी इस योजना में धन को डकार लिया गया क्योंकि न ही टाइल्स लगने के बाद रिसाव बंद हुआ और न ही योजना अपने उद्देश्य की तरफ बढ़ पाया।
सात साल बाद योजना को लागू करने वाले जिम्मेदार लोगों का जो लापरवाही दिखाई देता है इससे लगता है कि जनता के धन को बंदरबांट करने एवं बर्बाद करने के सिवा अधिकारियों और स्थानीय जिम्मेदारों के पास न तो कोई जिम्मेदारी है न ही जवाबदेही।