संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार, 2025 तक भारत में जलसंकट बहुत बढ़ जाएगा. अनुमान है कि ऐसे संकट से भारत सबसे ज्यादा प्रभावित होगा. आशंका जताई गई है कि यहां पर ग्लेशियर पिघलने के कारण सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी प्रमुख हिमालयी नदियों का प्रवाह कम हो जाएगा. UNESCO के डायरेक्टर आंड्रे एजोले ने कहा कि वैश्विक जल संकट से बाहर निकलने से पहले अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तत्काल एक व्यवस्था करने की जरुरत है.
अब सवाल इस बात का है कि जल संकट के इस तरह के डरवाने रिपोर्ट को पढ़ने और देखने के बाद भी भारतीयों को चिंता क्यों नही हो रही है ,क्या भारत के प्रत्येक नागरिक को यह विश्वास है कि देश में पानी की कमी नही होगा या फिर यह जानते हुए कि आने वाले दिनों में भारत के कई क्षेत्रों में पानी के लिए त्राहिमाम मचेगा उसके बाद भी लोग अभी से नही चेत रहे हैं।
इस समय भारत की कई छोटी-छोटी नदियां सूख गई हैं , वहीं गोदावरी ,कृष्णा एवं कावेरी जैसी बड़ी नदियों के जल संग्रहण में भारी कमी आई है एवं बड़ी-बड़ी नदियों में पानी का प्रवाह धीमा होता जा रहा है इसके अलावा जिन कुओं से पीने एवं सिंचाई के लिए पानी मिलता था आज वह भी लुप्त हो रहे हैं जिसका परिणाम है कि आज से ही पानी के लिए देश में संकट दिखाई देने लगा है ।
पूरे देश में भूजल का स्तर प्रत्येक साल औसतन एक मीटर नीचे सरकता जा रहा है। नीचे सरकता भूजल का स्तर देश के लिए गंभीर चुनौती है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए की आजादी के बाद कृषि उत्पादन बढ़ाने में भूजल की महत्वपूर्ण भूमिका थी। इससे हमारे अनाज उत्पादन की क्षमता 50 सालों में लगातार बढ़ती गई, लेकिन आज अनाज उत्पादन की क्षमता में लगातार कमी आती जा रही है। इसकी मुख्य वजह है बिना सोचे-समझे भूजल का अंधाधुन दोहन। कई जगहों पर भूजल का इस कदर दोहन किया गया कि वहां आर्सेनिक और नमक तक निकल आया है। पंजाब के कई इलाकों में भूजल और कुएं पूरी तरह से सूख चुके है। 80 फीसदी परंपरागत कुएं और कई लाख ट्यूबवेल सूख चुके है। गुजरात में प्रत्येक वर्ष भूजल का स्तर 5 से 10 मीटर नीचे खिसक रहा है। तमिलनाडु में यह औसत 6 मीटर है। यह समस्या आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब और बिहार में भी है।
अब जब यह सबको मालूम है कि पानी की कमी देश ही नही दुनिया के लिए बड़ा संकट बनता हुआ दिखाई दे रहा है तब जल संरक्षण के लिए अभी से कोई ठोस कदम क्यों नही उठाये जा रहे हैं । देश भर में सरकार द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना ( मनरेगा ) के जरिये तालाब , पोखरों एवं अन्य जलाशयों को बचाने एवं जल संरक्षण के प्रति गंभीरता दिखाई गई है लेकिन उदासीनता के चलते जिन गांवों में योजना के जरिये लाखों रुपया खर्च किया गया वहां पर जल संरक्षण की प्रगति न के बराबर है ।
हाल ही में मौसम विभाग द्वारा एक रिपोर्ट में बताया गया कि वर्ष 2023 के फरवरी महीने में जो गर्मी दर्ज किया गया है वह 1901 के बाद सबसे ज्यादा है ,वहीं अप्रैल एवं मई 2023 के महीने के गर्मी के बारे में पूर्वानुमान जारी कर बताया गया कि इस बार गर्मी कई वर्षों का रिकार्ड तोड़ेगी । यानी कि साफ है कि बढ़ते तापमान की वजह से भूजल संकट बढ़ना तय है ।
जल संरक्षण के प्रति गंभीरता से काम कर रहे सल्टौआ विकास खंड में तैनात खंड विकास अधिकारी सुशील कुमार पाण्डेय से घटते जलस्तर की चिंता पर बात की गई तो उन्होंने कहा कि सरकार की कई महत्वाकांक्षी योजनाओं के जरिये जल संरक्षण की दिशा में तेजी से काम किया जा रहा है ,जिसमें तालाब, पोखरों , नालों की सफाई एवं खुदाई नए अमृत सरोवर का निर्माण , कूप मरम्मत समेत पानी बचाने के सभी तरीकों पर मुहिम चलाया जा रहा है लेकिन इसके साथ ही सभी नागरिकों को भी पानी बचाने के लिए अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करना चाहिए , उन्होंने पानी बचाने के तरीकों के बारे में बताते हुए कहा कि दाढ़ी बनाते समय, ब्रश करते समय, सिंक में बर्तन धोते समय, नल तभी खोलें जब सचमुच पानी की ज़रूरत हो । गाड़ी धोते समय पाइप की बजाय बाल्टी व मग का प्रयोग करें, इससे काफी पानी बचता है। नहाते समय शॉवर की बजाय बाल्टी एवं मग का प्रयोग करें काफी पानी की बचत होगी। वाशिंग मशीन में रोज-रोज थोड़े-थोड़े कपड़े धोने की बजाय कपडे इकट्ठे होने पर ही धोएं।
जहाँ कहीं भी नल या पाइप लीक करे तो उसे तुरन्त ठीक करवायें। इसमें काफी पानी को बर्बाद होने से रोका जा सकता है। बर्तन धोते समय भी नल को लगातार खोले रहने की बजाये अगर बाल्टी में पानी भर कर काम किया जाए तो काफी पानी बच सकता है। सार्वजनिक पार्क, गली, मोहल्ले, अस्पताल, स्कूलों आदि में जहाँ कहीं भी नल की टोंटियाँ खराब हों या पाइप से पानी लीक हो रहा हो तो तुरन्त सम्बन्धित व्यक्ति को सूचना दें, इसमें हजारों लीटर पानी की बर्बादी रोकी जा सकती है। इसके अलावा घर के बाहर जल संरक्षण के लिए गड्ढे तैयार करें जिससे घर में इस्तेमाल होने के बाद निकलने वाला पानी एक जगह एकत्रित हो सके एवं पानी के लिए आने वाली बड़ी चुनौतियों से बचा जा सके।