सौरभ वीपी वर्मा
आजादी के बाद से इस देश में अंतिम पंक्ति में जीवन यापन करने वाले लोगों के आर्थिक एवं सामाजिक परिवर्तन के खूब ढोल पीटे गए ,लेकिन नेताओं की झूठ ,योजनाओं के धन की लूट ,भ्रष्टाचार , कालाबाजारी एवं कमीशनखोरी की वजह से देश की एक बड़ी आबादी आज भी बदसे बदतर जिंदगी जीने के लिए मजबूर है।
यह वही देश है जहां राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के आधार पर प्रति दिन 26 रुपया खर्च करने वाले को गरीब नही माना जाता जबकि इसी देश में सांसदों के ऊपर वेतन ,भत्ते , एवं उनके खर्चे को जोड़ दिया जाए तो प्रति सांसद के ऊपर एक साल में 72 लाख रुपया सरकार खर्च कर रही है यानी 20 हजार रुपया प्रतिदिन । बीते चार वर्षों में लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों पर सरकार ने 15.54 अरब रुपये खर्च किए हैं जबकि इसी देश में 22 करोड़ से ज्यादा लोग भुखमरी और कुपोषण का दंश झेल रहे हैं ,जो इन्ही 4 सालों में वर्ष दर वर्ष बढ़ता गया है ।
जीएचआई स्कोर (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) के आंकड़ों में भी भारत की स्थिति काफी खराब है ,जहां अन्नदाता का देश होने के बाद भी यहां जीएचआई 2022 रैंकिंग में भारत 121 देशों में से 107वें स्थान पर है जिसका मतलब 29.1 के स्कोर के साथ भारत में भुखमरी का स्तर गंभीर एवं चिंताजनक है।
इस देश के नेताओं ने देश के तरक्की और विकास के नाम पर देश के खजाने को यह कह कर खाली कर दिया कि इस देश में गरीबों को मुफ्त राशन दिया जा रहा है ,जबकि द फ़ूड पॉलसी रिपोर्ट के अनुसार भारत में भुखमरी की संख्या वर्ष 2015 में लगभग 15 करोड़ थी जो वर्ष 2022 में बढ़कर लगभग 22 करोड़ हो गई है , अब आप खुद विचार कीजिये कि यह देश कहाँ जा रहा है।
सच तो यह है जिसे भी सत्ता चलाने का मौका मिला उसके नेताओं और उसके करीबी नौकरशाहों ने जनता के पैसे से ऊंची इमारत , होटल , जमीन , मॉल , ट्रांसपोर्ट , विला आदि को हासिल कर लिया लेकिन इसी देश के करोड़ो लोगों को दोनों वक्त पोषण युक्त भोजन की व्यवस्था भी नही मिल पा रही है।