सौरभ वीपी वर्मा
बस्ती- समाज के वंचित तबके के लोगों का नेतृत्व करने के लिए यशाकायी बाबूराम वर्मा ने 1957 में प्राइमरी स्कूल के अध्यापक पद से त्याग पत्र देने के बाद राजनीति में एंट्री लिया । राजनीति में आने के बाद वर्मा जी को अमरौली शुमाली की जनता ने प्रधान बनाया और वें लगातार 20 वर्षों तक प्रधान रहें । इस दौरान वर्मा जी लगातार शोषित वंचित ,पिछड़े एंव दलितों की समस्या को समाधान में बदलने के लिए लड़ाई लड़ते रहे । 1975 तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की अनुच्छेद 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी , आपातकाल के दौरान आवाज बुलंद करने के नाते वर्मा जी को जेल में डाल दिया गया जिसकी वजह से उन्हें 2 साल तक जेल में रहना पड़ा जेल से बाहर आने के बाद रामनगर विधानसभा से 1977 में जनता पार्टी की टिकट पर भारी बहुमत से विधायक चुने गए , लगातर गरीबों एवं मजलूमों की आवाज उठाने वाले वर्मा जी 1993 में समाजवादी पार्टी की टिकट पर एक बार फिर विधायक चुने गए ।
बाबूराम वर्मा के पिता राम नरेश चौधरी एक सम्पन्न किसान थे जिन्होंने अंग्रेजों की बर्बरता पर तमाम क्षेत्रीय लड़ाई लड़ी । उनकी पांच पुत्रों बाबूराम वर्मा ,श्रीराम वर्मा , आचार्य मुनिराम पटेल ,सीताराम वर्मा एवं राजराम वर्मा में से बाबूराम वर्मा सबसे बडे थे जिन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद सबसे पहले समाजसेवा के रूप में अध्यापन का कार्य शुरू किया उसके बाद क्षेत्रीय सस्याओं एवं पिछड़े दलितों की उपेक्षाओं को देखते हुए राजनीति में एंट्री लिया लंबे संघर्षों के बाद एवं जेल से बाहर लौटने पर उन्होंने रामनगर विधानसभा( अब रुधौली) का प्रतिनिधित्व किया जिसमें वह 2 बार विधायक बने एवं 3 बार उप विजेता रहे । 23 नवंबर 1997 को वंचितों के मसीहा बाबूराम वर्मा का निधन हो गया जिससे पूरे प्रदेश में शोक की लहर दौड़ पड़ी।
मुलायम सिंह के करीबी थे बाबूराम वर्मा
यशाकायी बाबूराम वर्मा पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के काफी करीबी थे ,जानकर बताते हैं कि चुनाव प्रचार के दौरान मुलायम सिंह यादव उनके साथ रह कर उनके विधानसभा क्षेत्र में प्रचार प्रसार भी करवाने के लिए आया करते थे । मुलायम सिंह यादव और वर्मा जी के सबंध कितने प्रगाढ़ थे इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्मा जी के निधन के बाद मुलायम सिंह यादव उनके पैतृक निवास बरहपुर हवाईमार्ग से पहुंचे थे। आज 23 नवंबर को वर्मा जी की जयंती है जिनके तमाम सामाजिक और इतिहासिक कार्य अतीत के पन्नों में सिमटा हुआ है।