वीर भूमि झांसी के रैट माइनर्स ने उत्तराखंड में अपने हाथों का ऐसा कमाल दिखाया जिसके बाद टनल में फंसी 41 जिंदगीयां सुरक्षित बाहर निकल पाए. उत्तराखंड की सुरंग में फंसे श्रमिकों को बचाने झांसी से पहुंचे रैट माइनर्स ने कहा कि यह तो हमारे लिए रोजमर्रा का काम है. जब झांसी के रैट माइनर्स ने अभियान को आगे बढ़ाया तो इसके बाद 17 दिन बाद पूरे देश को सबसे बड़ी खुशी मिली.
झांसी से उत्तरकाशी पहुंचे झांसी के बहादुर रैट माइनर्स ने गजब का विश्वास दिखाया. रैट माइनर्स ने टनल के बाहर मौजूद बड़े-बड़े अधिकारियों के सामने जो भी कहा उससे सब की हिम्मत बढ़ती चली गई. सभी ने कहा मुझे टनल में जाने से डर नहीं लगता. यहां तो 800 MM का पाइप है, हम लोग तो 600 MM के पाइप में घुसकर भी रैट माइनिंग कर लेते हैं. ये तो रोज का काम है. यह बात झांसी के रहने वाले परसादी लोधी ने उत्तराखंड की सुरंग में फंसे श्रमिकों को बचाते समय कही.
परसादी का ये कॉन्फिडेंस सही साबित हुआ, क्योंकि सिर्फ 26 घंटे में हाथों से उनकी टीम ने करीब 12 से 13 मीटर खोद दिया. अब उत्तराखंड के सिल्क्यारा-डंडालगांव टनल में 17 दिनों से फंसे मजदूर सुरक्षित बाहर आ चुके हैं. मजदूरों और रेस्क्यू टीम के बीच 60 मीटर की दूरी थी. आपको बता दें कि 21 नवंबर को अमेरिकी ऑगर मशीन से ड्रिलिंग शुरू हुई, लेकिन 25 नवंबर की सुबह करीब 47 मीटर पर मशीन जवाब दे गई. आगे की खुदाई की रैट माइनर्स को जिम्मेदारी दी गई. इसके लिए रैट माइनर्स की टीम सिल्क्यारा बुलाई गई. ये टीम रेस्क्यू ऑपरेशन की असली हीरो साबित हुई, क्योंकि वर्टिकल ड्रिलिंग न सिर्फ खतरनाक थी बल्कि धीमी भी मानी जा रही थी.
रैट माइनर परसादी लोधी ने बताया कि पिछले 10-12 साल से रैट होल माइनिंग का काम कर रहा हूं. दिल्ली और अहमदाबाद में काम करता हूं. टनल में फंसे लोगों को निकालने का काम पहली बार किया।मुझे डर नहीं, ये तो मेरा रोज का काम है. बता दें कि परसादी लोधी 28 नवंबर की सुबह टनल में अंदर घुसे थे. परसादी ने बताया कि हम हिलटी नाम की हैंड ड्रिलर मशीन लाए हैं. 800 MM के पाइप में अंदर घुसकर पहले हम हैंड ड्रिलर से ड्रिल कर रहे थे, फिर मलबे को बाहर निकाल रहे थे. ये काम करने में कोई दिक्कत नहीं हुई.
रैट माइनिंग क्या है?
यह माइनिंग का एक तरीका है जिसका इस्तेमाल करके संकरे क्षेत्रों से कोयला निकाला जाता है। 'रैट-होल' टर्म जमीन में खोदे गए संकरे गड्ढों को दर्शाता है। यह गड्ढा आमतौर पर सिर्फ एक व्यक्ति के उतरने और कोयला निकालने के लिए होता है। एक बार गड्ढे खुदने के बाद माइनर या खनिक कोयले की परतों तक पहुंचने के लिए रस्सियों या बांस की सीढ़ियों का उपयोग करते हैं। फिर कोयले को गैंती, फावड़े और टोकरियों जैसे आदिम उपकरणों का इस्तेमाल करके मैन्युअली निकाला जाता है।
दरअसल, मेघालय में जयंतिया पहाड़ियों के इलाके में बहुत सी गैरकानूनी कोयला खदाने हैं लेकिन पहाड़ियों पर होने के चलते और यहां मशीने ले जाने से बचने के चलते सीधे मजदूरों से काम लेना ज्यादा आसान पड़ता है। मजदूर लेटकर इन खदानों में घुसते हैं। चूंकि, मजदूर चूहों की तरह इन खदानों में घुसते हैं इसलिए इसे ‘रैट माइनिंग’ कहा जाता है। 2018 में जब मेघालय में खदान में 15 मजदूर फंस गए थे, तब भी इसी रैट माइनिंग का सहारा लिया गया था।