सौरभ वीपी वर्मा
दुनिया का कोई भी मुल्क तब तक विकास के सारे पायदानों को नही छू पायेगा जब तक देश के अंदर रहने वाले एक बड़े समूह को शिक्षा, चिकित्सा, भोजन पानी और आवास की उपलब्धता सुनिश्चित न करा दे।
देश की मौजूदा हालात के समय में गरीबों की संख्या का सही आंकड़ा देखा जाए तो देश भर में 77 फीसदी लोग गरीब हैं वहीं 2009 में योजना आयोग के एक रिपोर्ट में तो चौंकाने वाली बात कही जाती है जिसमे बताया जाता है कि शहर में 28 रुपए 65 पैसे प्रतिदिन और गाँवों में 22 रुपये 42 पैसे पर जीवन यापन करने वाला व्यक्ति गरीब नही है यानी कि सरकार 22 रुपया खर्च करने वाले लोगों को टाटा ,बिरला, अडानी अंबानी मान रही है . वहीं ठीक तरीके से ग्रामीण अंचल के लोगों के खान पान और जरूरतों को देखते हुए खर्च होने की एक सीमा की समीक्षा की जाए तो दैनिक जीवन जीने के लिए 100 रुपया भी कम पड़ता है उसके बाद भी देश की सरकारों द्वारा 77 फीसदी लोगों को जो 22 से 50 रुपये से भी कमपर जीवन यापन करती है उसे अमीर माना जा रहा है।
2009-10 के सरकारी फार्मूले के अनुसार शहरों में महीने में 859 रुपए 60 पैसे और ग्रामीण क्षेत्रों में 672 रुपए 80 पैसे से अधिक खर्च करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं है जिसे सरकार ने 2011-2012 में ग्रामीण क्षेत्र में 816 रुपये और शहर में 1000 रुपये खर्च करने वाले को गरीबी रेखा से ऊपर कर दिया।
बेशर्म सरकारों के पूंजीवादी लुटेरों हमेशा गरीबों ,मजदूरों श्रमिकों और कारीगरों का शोषण किया है लेकिन सत्ता के आगे घुटने टेकने वाले नेताओं ने कभी इस मुद्दे पर आवाज नही उठाया कि 22 रुपये रोज पर किसी व्यक्ति का जीवन चलने वाला नही है इन लोगों ने इस बात का जिक्र भी नही किया कि साइकिल का टायर पंचर होने के बाद कमसेकम 10 रुपया उसका चार्ज लगता है .यह बताने के लिए इन लोगों ने जरूरत नही समझा कि अब दुकानों पर 5 रुपये में समोसा मिलता है और अगर मिनरल वाटर की बोतल खरीदना पड़े तो व्यक्ति को 20 रुपये की जरूरत पड़ेगी इसके अलावा और भी सामानों की जरूरत लोगों को पड़ती है जहां 22 रुपया किसी भी तरह से पर्याप्त नही है।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार आज भी भारत में 37 करोड़ लोग गरीब हैं रिपोर्ट में बताया गया कि 28 फीसदी आबादी भारत मे गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करती है लेकिन भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के वर्तमान स्थिति की सही समीक्षा की जाए तो देश में 77 ही नही लगभग 86 फीसदी आबादी गरीब है .यदि भारत सरकार की दलीलों के आधार पर 22 रुपया खर्च करने वाले को गरीब न माना जाए तो भारत सरकार को इस बात की घोषणा कर देनी चाहिए कि भारत मे 1 भी गरीब नही रह गया है क्योंकि 22 रुपया तक तो आज कल हर भारतीय खर्च कर रहा होगा।
वर्ष वर्ष 2011 -12 में भारत सरकार ने गरीबी की स्थिति जानने के लिए एक सर्वे कराया लेकिन उसके बाद वर्ष 2014 से 2024 तक बीजेपी सरकार में गरीबों पर खूब बात की गई लेकिन न तो सर्वे कराये गए और न ही उनके जीवन में आर्थिक सुधार के लिए कोई ठोस कदम उठाया गया बीजेपी सरकार में मुफ्त राशन की बात की गई जिसे 82 फीसदी लोगों को उपलब्ध कराने की बात की जा रही है लेकिन सवाल यह है कि क्या 5 किलो अनाज हर महीने उपलब्ध कराने से देश में गरीबी खत्म हो पाएगी या फिर दुनिया में अन्नदाता के देश की हंसी हंसारत होगी ?
निश्चित तौर पर सरकारों को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि अभी भी भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में एक बहुत बड़ी आबादी निवास करती है जिसे मूलभूत सुविधाओं की आवश्यकता है यह तस्वीर भी इसी भारत के नागरिकों के बारे में सटीक चित्रण करता हुआ दिखाई दे रहा है जहां गेहूं की फसल कटने के बाद गांव के बच्चे बुजुर्ग खेतों में गिरे हुए दानों को चुनने के लिए टूट पड़े हैं स्वाभाविक है कि यह भी गरीबी का एक हिस्सा है. इस लिए जरूरी है कि विभिन्न स्तरों में पिछड़े लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में ईमानदारी से काम किया जाए जिसमे खाना पकाने का ईंधन, साफ-सफाई ,चिकित्सा और शिक्षा की सुविधाएं ,पोषण सामग्री, स्वच्छ पेय जल ,मनरेगा की दैनिक मजदूरी मिलना पूरी तरह से सुनिश्चित हो तब जाकर हम एक सुंदर और संपन्न भारत का सपना पूरा का पाएंगे।