सौरभ वीपी वर्मा
बस्ती- 3 अध्यापक और 6 बच्चे ,उसके बाद एक भी अध्यापक एक भी बच्चे के साथ नही है , यह अव्यवस्था की कहानी उत्तर प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों की है।वैसे तस्वीर में दिखाई दे रही 3 महिलाओं में से 2 महिलाएं रसोइया हैं जिसके साथ स्कूल की एक अध्यापिका गप्पे मार रही हैं ,2 पुरुष अध्यापक कैमरे की बैकराउंड में नही हैं।
बस्ती जनपद के सल्टौआ विकास खंड के सुभई ग्राम पंचायत में वर्ष 1990 में इस स्कूल का निर्माण हुआ था ताकि यहां के बच्चे शिक्षित बने ,संस्कारी बने , सभ्य समाज में हिस्सेदारी करें , आईएएस ,पीसीएस , डॉक्टर ,इंजीनियर , कर्मचारी बने या कुछ भी न बन पाएं तो आईएएस आईपीएस अफसर से बात करने लायक बन जाएं।
लेकिन मैं पूरे दावे के साथ कह रहा हूँ कि उत्तर प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों की जो बदहाली है वहां आईएएस- आईपीएस अधिकारी बनने की बात छोड़ो IAS-IPS के बच्चे से बात करने लायक भी नही बन पा रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के परिषदीय स्कूलों से मात्र और मात्र मजदूर निकल रहे हैं जहां आठवीं तक जाते जाते 50 फीसदी बच्चे स्कूल का रूख बदल कर दिल्ली , महाराष्ट्र और गुजरात में कारपोरेट घरानों की फैक्ट्रियों और निर्माणधीन बहुमंजिला ईमारतों में श्रमिक के तौर पर नामांकित हो जाते हैं।
इस अव्यवस्था की जवाबदेही विभागीय अधिकारियों ,जनप्रतिनिधियों ,मंत्रियों से लेकर मुख्यमंत्री तक को करना चाहिए अन्यथा परिषदीय स्कूलों में ताला लगा देना चाहिए।