समीक्षात्मक रिपोर्ट
सौरभ वीपी वर्मा
बस्ती- भारत में पंचायती राज व्यवस्था लागू होने के बाद देश भर के गांवों में मूलभूत सुविधाओं और आवश्यकताओं पर काम करने के लिए तेजी से बल दिया गया और वर्ष दर वर्ष भारत के गांवों को बेहतर बनाने के लिए सरकार द्वारा कई प्रकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं की शुरुआत किया गया ताकि भारत की सभ्यता और संस्कृति का विकास हो सके लेकिन जिम्मेदार लोगों की उदासीनता और भ्रष्टाचार के चलते आजादी के साढ़े सात दशक बीत जाने के बाद भी ग्राम पंचायतों की दशा और विकास के दिशा में परिवर्तन होता नही दिखाई दे रहा है।
उत्तर प्रदेश के बस्ती जनपद के अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत अमरौली शुमाली जनपद की दूसरी सबसे बड़ी ग्राम पंचायत है जहां पर करीब दस हजार की आबादी निवास करती है ग्राम पंचायत में राज्य वित्त ,केंद्रीय वित्त ,मनरेगा के अलावा क्षेत्र पंचायत निधि , जल निगम ,नलकूप विभाग सहित कई विभागों और निधियों से विकास कार्य किये गए लेकिन इन सब में करोड़ो रुपया खर्च होने के बाद भी यहां की व्यवस्थाएं पूरी तरह से सिफर है।
ग्राम पंचायत में वर्ष 2014 में एक करोड़ 59 लाख की लागत से ओवर हेड टैंक का निर्माण करवाया गया ताकि ग्रामीणों को स्वच्छ जल मिल सके लेकिन अमरौली शुमाली ग्राम पंचायत के 56 मजरों पर पानी नही पहुंच सका लिहाजा विभाग ने करीब 40 लाख रुपया फिर से खर्च किया लेकिन उसके बाद ग्राम पंचायत के लोगों को ओवर हेड टैंक से स्वच्छ जल पीने का नसीब नही हुआ नतीजन करीब 2 करोड़ रुपया खर्च होने के बाद स्वच्छ पेय जल योजना हाथी दांत बनकर रह गया।
देश में स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत होने के बाद ग्राम पंचायत अमरौली शुमाली में करीब एक हजार व्यक्तिगत शौचालय , सामुदायिक शौचालय , कई दर्जन कूड़ेदान इत्यादि में करीब 2 करोड़ रुपया खर्च किया गया लेकिन इतनी बड़ी धनराशि खर्च होने के बाद भी न तो ग्राम पंचायत खुले में शौच से मुक्त हो पाया और न ही सावर्जनिक स्थानों पर साफ सफाई की व्यवस्था मुकम्मल हो पाया परिणाम यह है कि की वर्ष दर वर्ष लाखों रुपया ग्राम पंचायत निधि से खर्च किया जा रहा है उसके बाद भी गंदगी और कूड़े के ढेर पर ग्राम पंचायत टिका हुआ है।
ग्राम पंचायत में वर्ष 2020-21 में पंचायत निधि से करीब 5 लाख रुपया खर्च करके सड़क के किनारे लगे बिजली के पोल पर स्ट्रीट लाइट लगाने का कार्य किया गया लेकिन रख रखाव और मरम्मत के अभाव में 95 फीसदी स्ट्रीट लाइट पोल पर या तो खराब हो गए या फिर गायब हो गया। इसी प्रकार ग्राम पंचायत में उपरोक्त निधियों से कई करोड़ रुपया खर्च किया गया लेकिन परिणाम यह है कि इतनी बड़ी धनराशि खर्च होने के बाद भी योजना अपने उद्देश्य की पूर्ति नही कर पाया । ऐसी स्थिति में सवाल खड़ा होता है कि क्या कमीशन खोरी और बंदरबांट की वजह से ही योजनाओं की शुरुआत होती है या फिर जिस योजना पर लाखों करोड़ों रुपया खर्च किया जाता है उससे ग्रामीणों को लाभ मिल पायेगा।